इंडिया में बढ़ती क्रय शक्ति और मार्केट में सुपरकार्स एवं सुपरबाइक्स के उपलब्धता के कारण फर्स्ट टाइम कस्टमर्स की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन, जैसा की कहा जाता है, ज़्यादा पॉवर का मतलब है ज़्यादा जिम्मेवारी. दुःख की बात है की इंडिया में सुपरकार्स और सुपरबाइक्स चलाना आसान काम नहीं है. हम बताते हैं कैसे!
Tata Nano चलाना और Lamborghini चलाना अलग-अलग बातें हैं
ज्यादा पॉवर वाली सुपर कार्स और सुपर बाइक्स के लिए लाइसेंस इशुइंग स्टैण्डर्ड में कमी के कारण ये वाहन अधिकतर उन लोगों के हाथ लग जाते हैं जिन्हें इन वाहनों की पॉवर को संभालने और उससे होने वाले खतरों की बिलकुल समझ नही होती. इंडिया में आम बात है की एक 18 वर्षीय लड़के को उसके माता पिता सुपर बाइक गिफ्ट करें और वो अगले ही दिन उसका एक्सीडेंट करा आये क्योंकि इन पावरफुल मशीनों की स्पीड के आगे, इन्हें चलाने वाला अक्सर इन्हें संभालने की क्षमता को नज़रअंदाज़ कर बैठता है. बाहर मुल्कों में इन हाई परफॉरमेंस वाहनों को चलाने के इच्छुकों को पहले एक कठोर ड्राइविंग टेस्ट देना पड़ता है.
जागरूकता की कमी
इन हाई परफॉरमेंस वाहनों को चलाने के लाइसेंसिंग स्टैण्डर्ड और ज्यादा ख़राब हो जाते हैं जब इनके ख़रीदारों को इन्हें संभालने की समझ नहीं होती. ज्यादातर जो माता पिता अपने बच्चों को सुपर कार्स/बाइक दिलवाते हैं वो इन वाहनों को ना संभाल पाने के खतरे से खुद अनजान होते हैं. वो सेल्समैन द्वारा इन वाहनों के सेफ्टी फीचर्स की आड़ में गुमराह होकर ये भूल जाते हैं की असल सेफ्टी इन्हें चलाने वाले के हाथ में होती है. सीधे तौर पर कहा जाये तो बिना तजुर्बे वाले लोगों को ये वाहन देना वाकई खतरनाक है और लोगों को ये वास्तविकता समझनी चाहिए.
इंडिया के रोड पर कुछ भी हो सकता है
सुपर कार और सुपर बाइक्स 5 सैकंड में 100 km/h और 10-15 सैकंड में 200 km/h तक की स्पीड तय कर लेती हैं. जिन्होंने इन वाहनों को चलाया है वो इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि किस तरह ये मशीनें छूते ही रफ़्तार पकड़ती हैं और लोगों को उनके कण्ट्रोल और सिक्यूरिटी का ग़लत सन्देश देती हैं. अब ज़रा एक मिनट को सोचें की ऐसी रफ़्तार पर कोई साइकिलवाला या कोई गाय/कुत्ता आपके सामने आ जाए. ऐसी रफ़्तार पर कोई सही कदम लेना लगभग नामुमकिन है. फिर आते हैं इंडिया की सड़कों पर न दिखने वाले गड्ढे, ग़लत तरीके से डिजाईन की गई सडकें, और बाकी अड़चनें जिनके कारण इन हाई परफॉरमेंस वाहनों की हैंडलिंग और भी मुश्किल हो जाती है.
सुपरकार्स की साइड/रियर विसिबिलिटी बेहद खराब होती है
इंडिया के अप्रत्याशित ट्रैफिक के कारण सुपर कार्स इंडिया में और भी खतरनाक साबित होती हैं. बेशक सुपर कार्स का डिजाईन इंडिया के ट्रैफिक के मुताबिक़ नहीं हो सकता पर ये बेहद ज़रूरी है की खरीदार इन वाहनों और इंडियन रोड्स पर मौजूद खतरों को समझें.
ट्रैक की कमी के चलते इन बाइक्स/कार्स का सही उपयोग नहीं हो पाता
सुपरकार्स और सुपरबाइक्स को रेसिंग ट्रैक पर इस्तेमाल करने के लिए बनाया जाता है. अगर कुछ नहीं, तो ऐसे ट्रैक्स ड्राईवर को ऐसे कार्स/बाइक्स को चलाने के लिए ज़रूरी अनुभव ही प्रदान करते हैं. लेकिन दुःख की बात है की इंडिया में ऐसे ट्रैक्स की भारी कमी है. ग्रेटर नॉएडा के Buddh International Circuit और साउथ के चुनिन्दा ट्रैक्स और क्लोज्ड एयर स्ट्रिप्स के अलावा, इंडिया में बहुत कम जगहें हैं जहाँ सुपर कार्स और सुपर बाइक चलाने वाले सुरक्षित रूप से तेज़ रफ़्तार का लुत्फ़ उठा. काफी ख़रीदार सड़कों पर ही ये कोशिश करते हैं और ये अमूमन किसी भयानक हाद्से का शिकार हो जाते हैं.
अच्छी ट्रेनिंग संस्थानों की कमी
पर्याप्त ट्रेनिंग संस्थानों के नहीं होने के कारण सुपर कार्स और सुपरबाइक्स के मालिक इन्हें चलाने की ट्रेनिंग भी नहीं ले पाते. ये सही है की कुछ मैन्युफैक्चरर्स और प्राइवेट संस्थान ट्रैक ट्रेनिंग प्रोग्राम्स ऑफ़र करती हैं. पर इस तरह के संस्थान बहुत कम हैं जिसके कारण इन वाहनों के अधिकतर ख़रीदार बिना ज्यादा अनुभव के सार्वजनिक सड़कों पर इनका दुरुपयोग करते नज़र आते हैं.
इंडिया में क़ानून अच्छी तरह से लागू नहीं होता
हाल ही में आंध्र प्रदेश के एक मिनिस्टर के 21 वर्षीय बेटे की मौत हो गई जब उसकी Mercedes Benz G-Wagen SUV (500 बीएचपी) सीधे मेट्रो के खम्भे में जा टकराई. मृतक लड़के के नाम पहले से ही काफी स्पीडिंग चालान होते हुए भी उसे सार्वजनिक सड़कों पर चलाने से नहीं रोका गया. चालक अपनी SUV कुछ ज़रुरत से ज्यादा तेज़ दौड़ा रहा था जब ये घटना हुई. जो हमें लाता है एक दुसरे पहलु पर– कानून का सही ढंग से लागू न किया जाना. ऐसे अपराधों के लिए सख्त सजाओं की कमी के चलते, अपराधियों का केयर-फ्री “देख लिया जायेगा” रवैया भी एक ज़रूरी पहलू है. अक्सर कानून के प्रति इस लापरवाही और कानून के सही ढंग से लागु न होने की वजह से कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं जिनके ज़्यादातर शिकार अनजान वाहनचालक हो जाते हैं.
रोड पर सुपरबाइक्स/सुपरकार्स को चुनौती देने वाले बेवक़ूफ़
सड़क का सबसे सीधा उसूल है की जब आप सड़क पर हों तो अपने ईगो को साथ न लेकर चलें. ये बात Ducati चलानेवाले पर भी उतनी ही लागू होती है जितनी की Splendor चलानेवाले पर. पर अफ़सोस की लोग ज़्यादातर इसका उल्टा करते हैं. इंडिया में काफी लोग सुपर कार या बाइक सड़क पर दिखने पर उत्साहित होकर अपनी कम पॉवर वाले वाहन से इन हाई परफॉरमेंस वाहनों को चुनौती देने का प्रयास करते हैं. इस अवांछित अटेंशन से बचने और वाहन तेज़ चलाने के चक्कर में अक्सर दुर्घटनाएँ हो जाती हैं.
लेकिन गलती हमेशा सुपरबाइक/सुपरकार्स की होती है
लोग ज़्यादातर बड़ी और महंगी कार वाले को दोषी ठहराते हैं और ये डर हर सुपर कार और सुपर बाइक वाले को होता है. भले ही कोई बेवकूफ अपनी गलती से किसी सुपर कार में जा टकराए , पर इंडिया में ज्यादा संभव है की गुस्साई भीड़ उस हाई परफॉरमेंस मशीन के मालिक को मार डाले सिर्फ इसलिए क्योंकि वो इतनी अनोखी और महंगी मशीन चला रहा है.
स्पीड तो लिमिटेड है
इंडियन सड़कों पर अधिकतम 60 km/h की स्पीड से वाहन चलाने की अनुमति है. इसका मतलब सुपर बाइक्स और सुपर कार्स लगभग हर समय ही स्पीड लिमिट का उल्लंघन कर रही होती हैं. ऐसे में अगर उनका कोई एक्सीडेंट होता है तो 10 में से 9 बार उन्हीं को दोषी ठहराया जाता है. इसकी वजह से इन मशीनों को चलाने वालों के लिए और भी खतरा रहता है.