भारतीय कार बाज़ार में SUVs, सबसे ज़्यादा बिकने वाले वाहनों की श्रेणी में से एक है. इनके शक्तिशाली इंजन्स और आकार के चलते लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं. लेकिन लोगों ने Mahindra Scorpio, Toyota Fortuner जैसी अन्य SUVs के बारे में ढेरों ग़लतफ़हमियां पाल रखी हैं. आइये, SUVs के बारे इन ग़लतफ़हमियां को दूर करने की कोशिश करते हैं.
सभी बड़ी और ऊंची कार्स SUVs हैं
ये बात सच नहीं है. आजकल किसी भी बड़ी, लम्बी चौड़ी और ऊंची कार को SUV लेबल कर देने का ट्रेंड चल पड़ा है, जो कि केवल मार्केटिंग की चालबाज़ी है. SUV का सीधा-सीधा और साफ़-साफ़ मतलब है, “स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल”, जिसमें हल्की या भारी ऑफ-रोडिंग के लिए 4WD सिस्टम होना अनिवार्य होता है. जिन कार्स का डिज़ाइन SUVs से प्रेरित होता है लेकिन 4WD जैसे SUVs के अनिवार्य फीचर्स नहीं होते, उन्हें क्रॉसओवर कहा जाता है, भले ही देखने में वो कितनी भी आलिशान क्यों न लगें.
भारतीय कार बाज़ार में बहुत सी SUV-प्रेरित गाड़ियों को आजकल SUV करार दिया जा रहा है, जो कि बाज़ार और लोगों में एक भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है. उदाहरण के लिए KUV100 जैसी कार को SUV बता दिया जाता है, जो कि सच नहीं है. KUV100 सिर्फ एक हैच है जिसका बॉडी डिज़ाइन SUV से प्रेरित है. दूसरी ओर, अगर कोई एक प्रमाणित SUV है, तो वो है Toyota Fortuner.
SUVs किसी भी बाधा को लांघ सकती है
ये SUVs के बारे में पल रहीं सबसे बड़ी ग़लतफ़हमियों में से एक है. ये बात सही है की शुरआत में SUVs को बनाने के पीछे ये ही मंशा हुआ करती थी, लेकिन, निरंतर बदलते मॉडर्न ट्रेंड्स के साथ SUV शब्द के असल माने भी बदल गए हैं. अगर आप ऐसी SUV के मालिक हैं, जो AWD (ऑल व्हील ड्राइव) सिस्टम से लैस है, तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि आपकी SUV ऑफ-रोडिंग के लिए बेहतरीन गाड़ी है. ऐसा इसलिए कि, भले ही AWD (ऑल व्हील ड्राइव) सिस्टम गाड़ी के चारों व्हील्स को पॉवर दे रहा हो, लेकिन डिफेरेंटियल लॉक्स और लो रेंज ट्रंसफर केस जैसे फीचर्स के आभाव में आपकी गाड़ी अपनी पूरी क्षमता के चरम को नहीं छू पाएगी. आपको AWD SUVs के ऑफ-रोडिंग के दौरान फ़स जाने के ढेरों उदाहरण देखने को मिल जायेंगे.
Renault Duster, जो केवल AWD सिस्टम से लैस है, अपने टेस्टिंग डेस्टिनेशन तक पहुंचने में असफल रहेगी. अगर ये ही टेस्टिंग डेस्टिनेशन Mahindra Scorpio या Thar, जो लो-रेश्यो गियरबॉक्स से लैस गाड़ियां हैं, पर आज़माया जायेगा तो ये दोनों गाड़ियां इसमें सफल रहेंगी. हार्डकोर SUVs लो और हाई-रेंज ट्रांसफर केसेस से लैस होती हैं. ऐसी गाड़ियों को पॉवर सीधे ट्रांसमिशन से नहीं मिलती. इन गाड़ियों में पॉवर ट्रांसफर केस से होते हुए व्हील्स तक पहुँचती है. ऐसी गाड़ियों में डिफ्रेंशियल लॉक लगे होते हैं जो एक्सेल्स को लॉक एक साथ काम करवाने में काम आते हैं. इसका मतलब ये हुआ की गाड़ी के सभी व्हील्स एक ही रेट पर घुमते हैं, जो की रफ टैरेन को सँभालने और क्रॉलिंग के समय मददगार साबित होते हैं.
SUVs की रफ़्तार धीमी होती है
वो दिन लद गए जब SUVs भारी भरकम हुआ करतीं थीं. मॉडर्न SUVs देखने में भले ही बड़ी और आलसी लगती हों, लेकिन ये बिजली की रफ़्तार से दौड़ने की क्षमता रखती हैं. नई तकनीक से लैस इंजन और एडवांस्ड इंजीनियरिंग के सहारे इन गाड़ियों को बहुत तेज़ और त्वरित बनाया गया है. आज कोई भी अच्छी और पॉवरफुल SUV रफ़्तार के मामले में किसी भी तेज़ हैचबैक को टक्कर दे सकती है. कई SUVs तो ऐक्सेलरेशन और स्पीड में बेहतरीन स्पोर्ट्स कार्स से मुक़ाबला दे रहीं हैं. ऐसी गाड़ियां जो स्टॉक फॉर्म में तेज़ हैं के कुछ उदाहरण हैं Land Rover Range Rover SVR, Bentley Bentayga और Porsche Cayenne Turbo S. Bentayga 0 से 100 किमी/ घंटा की रफ़्तार अचंभित कर देने वाले मात्र 4 सेकण्ड्स में पकड़ लेती है. किसी भी कार के लिए ये सही में तेज़ है.
आपको इनकी फ्यूलिंग पर खूब खर्च करना होगा
ये भी एक ग़लतफ़हमी ही है जो की लम्बे समय से चली आ रही है. पुराने इंजन अनरिफाइंड हुआ करते जहाँ माइलेज के बनिस्पत ध्यान केवल पॉवर आउटपुट और टॉर्क पर ही दिया जाता था. लेकिन आधुनिक गाड़ियों में ऐसे इंजन्स का इस्तेमाल बंद हो गया है. गाड़ी के आकार से उसके द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे फ्यूल की मात्रा को जोड़ने वाली सोच से अब छुटकारा पाने की ज़रूरत है. Volvo XC90 T8 इस बात का सटीक उदाहरण है. इस SUV का 407 बीएचपी पॉवर आउटपुट है, लेकिन इसकी अधिकतम फ्यूल एफिशिएंसी 57 किमी प्रति लीटर है. यहाँ तक की Ford Endeavour जैसी कन्वेंशनल पॉवर्ड SUV भी 14.2 किमी प्रति लीटर के ARAI-रेटेड माइलेज के साथ आ रही हैं, जो की गाड़ी के आकर को देखते हुए बहुत ही बढ़िया माइलेज है.
SUVs की ड्राइविंग मुश्किल होती है
पुराने तन्दुरुस्त लोग कहा करते थे की अगर आप एक बड़ी और भारी भरकम SUV चलाते हैं तो आपको वर्ज़िश की ज़रुरत नहीं है. उनके ज़माने में भले ही इस बात में वज़न था लेकिन आज के मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक्स और असिस्ट्स ने किसी भी कार और SUV के कंट्रोल और ड्राइव को बेहद आसान बना दिया है. लेकिन अभी भी कई लोग SUV को चलाने की आसानी के पहलु को उसके साइज और वज़न से जोड़ कर देखते हैं. उन्हें लगता है की अपने साइज़ और वज़न की वजह से ही SUV को ड्राइव करना कठिन होता है.
SUVs को मोड़ते वक़्त इनका बॉडी रोल बहुत ज़्यादा होता है क्योंकि उनका गुरुत्वाकर्षण केंद्र बेहद ऊंचा होता है. लेकिन आज की मॉडर्न SUVs की ड्राइव किसी भी आम कार के जैसे आसान हो गयी है. रियर कैमरा और पार्किंग सेंसर्स जैसी अतिरिक्त सुविधाएँ गाड़ी तो संकरी जगहों पर पार्क करना बेहद आसान बनती हैं.
SUVs केवल डीज़ल पर ही चलती हैं
बहुत से गाड़ियों के प्रेमी लोग, SUVs खरीदने से इस आम धारणा के चलते बचते हैं कि, सभी SUVs डीज़ल इंजन पर ही चलती हैं. ये बात सही है की डीज़ल इंजन्स रिफाइनमेंट के मामले में अपने पेट्रोल वर्शन से पीछे हैं. लेकिन ये बात बिलकुल गलत है की सभी SUVs केवल डीज़ल इंजन से ही चलती हैं. बाज़ार में अब कई SUVs के पेट्रोल वेरिएंट्स उपलब्ध है. हालांकि, अपनी काम एवरेज के चलते ये ज़्यादा पॉपुलर नहीं हैं लेकिन ऐसे ओप्तिओंस बाजार में मिल रहे हैं. लेटेस्ट Toyota Fortuner इसका अच्छा उदाहरण है जिसमें 2.7-लीटर पेट्रोल इंजन लगा है जो 164 बीएचपी की अधिकतम पॉवर और 245 एनएम की अघिकतम टॉर्क पैदा करता है.
सभी SUVs बेहद आरामदायक होती हैं
कुछ लोग इस बात से नाइत्तेफ़ाक़ी रखते होंगे लेकिन सच बात ये है की इस तथ्य से इत्तेफ़ाक़ रखने वालों का भी बहुत बड़ा तबका है. ऐसा इसलिए है कि इनकी हाई सीटिंग पोज़ीशन और ग्राउंड क्लीयरेंस उच्च सेण्टर ऑफ़ ग्रेविटी पैदा करती. वैसे तो SUVs में बैठ कर सड़क के बड़े-बड़े गड्ढों का बिलकुल भी एहसास नहीं होता लेकिन घुमावदार रास्तों पर ये ही गड्ढे कष्टदायक हो जाते हैं. और सॉफ्ट सस्पेन्शन के चलते घुमावदार रास्तों पर पैसेंजर्स को एक झूले का एहसास होता है जो की काफी कष्टदायक होता है.
SUVs की पिछली सीट पर बैठे पैसेंजर्स को सबसे अधिक तकलीफ बॉडी रोल की वजह से होती है. इस बात की पुष्टि आप उन लोगों से कर सकते हैं जिन्होंने फर्स्ट-जेनेरशन Mahindra Scorpios की सवारी की है. घुमावदार रास्तों पर अधिकतर SUVs कष्टदायक एहसास देती हैं. पिक-अप ट्रक पर आधारित Toyota Fortuner के स्टिफ सस्पेन्शन बहुत से लोगों को दिक्कत महसूस कराते हैं.
इनकी मेंटेनेंस कॉस्ट बहुत ज़्यादा होती है
लोग साधारणतयः कहते है कि SUVs की मेंटेनेंस कॉस्ट बहुत ज़्यादा होती है और इस ही वजह से लोग इनसे दूर ही रहते हैं. अगर हम रिऐलिटी चेक करें तो पाएंगे की अब पुराने ज़माने की SUVs से नई SUVs की मेंटेनेंस काफी सस्ती हो चुकी है. सभी SUVs को डीज़ल ग़ज़लर्स की श्रेणी में रखना उचित नहीं होगा. इसी तरह इनकी सर्विसिंग भी अब बहुत ज़्यादा खर्चीली नहीं रह गयी है.
इसका एक उदाहरण है Ford Endeavour. Ford का दावा है की 60,000 किमी तक की सर्विसिंग पर कुल खर्चा 50,000 रुपए से काम का है जिसमे लेबर और पार्ट्स दोनों शामिल हैं. ये कई काम कीमत वाली सेडान और हैचबैक गाड़ियों की सर्विसिंग से सस्ता है.
बड़े टायर्स और हाई सीटिंग पोज़ीशन हमेशा अच्छी होती हैं
SUV सेगमेंट के पॉपुलर होने के पीछे बड़े टायर्स और हाई सीटिंग पोज़ीशन प्रमुख कारण हैं. जहाँ बहुत से लोग इनको अच्छा मानते हैं लेकिन असलियत में ये एक खतरनाक कॉम्बिनेशन साबित हो सकता है. SUV की हाई सीटिंग पोज़ीशन के साथ सबसे बड़ी समस्या कि गाड़ी का सेन्टर ऑफ़ वेट ज़मीन से दूर होता है जो गाड़ी के पलटने के खतरे को बढ़ावा देता है. यही कारण है की SUV में हाई स्पीड टर्न लेना खतरनाक माना जाता है.
हर SUVs की बनावट ‘मज़बूत’ होती है
जैसे हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती वैसे ही SUVs देखने में भले ही टफ और स्ट्रॉन्ग लगती हों लेकिन ये इस बात का प्रमाण नहीं है की वो मज़बूत भी हों. SUVs अपने साइज और स्टान्स के चलते मस्कुलर और मज़बूत दिखाई देती हैं. लोगों में आमतौर पर ये अवधारणा है कि SUV सुरक्षित होतीं हैं और क्रैश के समय SUV में बैठे पैसेंजर्स को कुछ नहीं होता लेकिन वास्तविकता से ये बात बहुत दूर है. इस विडंबना का सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है Mahindra Scorpio. जिसे NCAP टेस्टिंग फॉर सेफ्टी में ज़ीरो मार्किंग मिली है. इसके बॉडी स्ट्रक्चर को भी अनस्टेबल करार दिया गया है. लेकिन देखने ये गाड़ी कितनी टफ और मज़बूत है दिखाई पड़ती है. है न?