अगर “सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय” की चली तो भारत में बिक रही हर कार में 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया जाएगा. यह स्टील फिलहाल लगभग सभी कार निर्माताओं द्वारा अपनी किफायती कार्स के निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे 30 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील से कहीं ज़्यादा मज़बूत है. किफायती कारों में 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील के उपयोग से ये कारें न केवल ज्यादा मज़बूत होंगी बल्कि इन पर कभी जंग भी नहीं लगेगी.
लम्बी अवधि में कार्स के ढांचे में आने वाली कमजोरी का सबसे बड़ा कारण जंग ही है. असल में कार के ब्रेक्स और सस्पेंशन जैसे हिस्से जो पानी और धूल के सीधे सम्पर्क में आते हैं समय के साथ जंग खा-खा कर झड़ने लगते हैं और यही बात कार के ढांचे को कमज़ोर कर उन्हें असुरक्षित बनाती है. ऐसा होने से रोकने के लिए भारत सरकार एक ऐसा कदम उठाना चाहती है जहाँ एक क़ानून के ज़रिए सभी कार निर्माताओं को मज़बूत और जंग मुक्त कारें उत्पादित करने के लिए 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील के उपयोग के लिए बाध्य किया जा सके.
भारत सरकार की प्रतिष्ठित ओटोमोबाइल परीक्षण संस्था International Centre for Automotive Technology (ICAT) ने यह सिफारिश की है कि अंदरूनी खपत के लिए देश में उत्पादित सभी कार्स पर “salt spray” टेस्ट किया जाए. तामाम विकसित देशों में कारों की जंग-रोधी क्षमता को जांचने के लिए उन पर यह टेस्ट किया जाता है. अगर इस टेस्ट को भारतीय कारों पर भी अनिवार्य कर दिया जाए तो कार निर्माताओं को इस टेस्ट को पार करने के लिए 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील का उपयोग करना ही पड़ेगा.
गैल्वेनाइज़ेशन एक प्रक्रिया है जिसमें स्टील की जंग-रोधी क्षमता को बढ़ाने के लक्ष्य से इसमें जिंक मिलाया जाता है. अधिकाँश भारतीय कार्स में 30 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील का ही उपयोग हो रहा है और ये प्रतिशत लम्बे समय के लिए कार कि जंग रोधी क्षमता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसके लिए तो 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील का उपयोग ज़रूरी है. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि भारत सरकार द्वारा कार निर्माण में 70 प्रतिशत गैल्वेनाइज्ड स्टील के उपयोग पर ज़ोर 50 प्रतिशत की वैश्विक औसत से ज़्यादा है.
इस बीच आइए जानते हैं कि ICAT का नया “salt spray” टेस्ट और भरतीय कार्स में अधिक मात्रा में गैल्वेनाइज्ड स्टील के उपयोग की महत्ता पर क्या कहना है,
भारत में यात्री कार्स की सुरक्षा का पैमाना कार में लगे एयर बैग्स, सीट बेल्ट्स, शॉक अब्ज़ोर्बिंग डिवाइसेज़, वगैरह को ही माना जाता है. यहाँ कार की ‘जंग-रोधी क्षमता’ को कार की सुरक्षा से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं में जगह ही नहीं दी जाती. देश में ऑटोमोबाइल्स की सुरक्षा के मद्देनज़र हम मंत्रालय को प्रस्ताव देते हैं कि वो एक ऐसा क़ानून पारित करें जहाँ गाड़ी में जंग की समस्या से लड़ने के लिए बॉडी में स्टील की नयी मात्रा तय हो. ICAT इस काम के नियमों की ड्राफ्टिंग और ज़रूरी टेस्ट केन्द्रों के निर्माण में मंत्रालय के सहयोग के लिए पूरी तरह तैयार है. कुछ अध्यनों के मुताबिक पानी से सीधे सम्पर्क में रहने की वजह से कार्स के ब्रेक और सस्पेंशन जैसे हिस्सों में भी जंग लगने का खतरा बना रहता है.
सोर्स – ET