बढ़ती उपलब्धता और वैल्यू टैग के चलते भारत में सेकंड हैण्ड कार्स तेज़ी से मशहूर हो रही हैं. जहां कई सारे प्लेटफार्म आपको मॉडल फाइनल करने में मदद करते हैं, क्या आपको पता है की आखिरी फैसला करने से पहले किन चीज़ों को चेक कर लेना चाहिए? आइये इन्हीं 6 बातों पर एक नज़र डालते हैं:
1. शूक्ष्म चीज़ें परखना

इस बात को सुनिश्चित कर लीजिये की आप गाड़ी को दिन की रौशनी या शोरूम की अच्छी रौशनी में एक बार अच्छे से परख लें. इससे आपको बॉडी लाइन में खामियां या पेंट में फर्क देखने में मदद मिलेगी. इन बातों को चेक कर आप पता लगा पायेंगे की क्या गाड़ी को एक्सीडेंट के बाद रिपेयर कराया गया है. ऐसे डैमेज देखने के लिए आप अपने मोबाइल के टॉर्च का सहारा भी ले सकते हैं.
इसी तरह से कार के इंटीरियर को भी चेक करिए. इसमें मात्र 10 मिनट का समय लगता है लेकिन आप आगे मिलने वाले अप्रत्याशित दिक्कतों से बच सकते हैं.
2. सर्विस रिकॉर्ड

अधिकाँश कार मालिक अधिकृत सर्विस सेण्टर से ही अपनी गाड़ी की सर्विसिंग करवाते हैं और इसके वजह से आप उस कार के पूरे सर्विस रिकॉर्ड को आसानी से देख सकते हैं. ऐसी कार्स से दूर रहें जिन्हें अच्छी तरह से सर्विस नहीं कराया गया हो. इसके चलते कार की वारंटी भी रद्द हो सकती है. इसके अलावे, एक्सीडेंटल रिपेयर के वर्णन का भी ध्यान रखें. जहां छोटे एक्सीडेंट को नज़रंदाज़ किया जा सकता है, बड़े एक्सीडेंट के बाद का रिपेयर कार की लाइफ पर बुर असर डाल सकता है.
3. एक एक्सपर्ट को साथ ले जाएँ

कार को जांचने के लिए हमेशा ही एक ऑटोमोटिव एक्सपर्ट को अपने साथ ले जाएँ. ये एक्सपर्ट आपका कार प्रेमी दोस्त या पास के गेराज का मैकेनिक भी हो सकता है. हमें भले ही कार्स पसंद हों, उसकी छिपी हुई दिक्कतों का पता लगाना हमारे लिए अक्सर संभव नहीं हो पाता. उन्हें कार को अच्छी तरह से टेस्ट कर लेने दें, और जब वो संतुष्ट होकर आपको सारी जानकारी दे दें, तभी डील को फाइनल करें.
4. फीचर्स और इलेक्ट्रिक पार्ट्स

अधिकाँश मॉडर्न कार्स में ढेर सारे फीचर्स और मॉडर्न इलेक्ट्रिक आइटम मिलते हैं. थोड़ा समय लेकर इस बात को सुनिश्चित कर लीजिये की ये सब अच्छे से काम कर रहे हैं. इस लिस्ट में एसी की कार्यक्षमता से लेकर पार्किंग सेंसर/कैमरा, सभी पॉवर विंडो, सारी लाइट्स, ऑडियो सिस्टम, और स्टीयरिंग कण्ट्रोल वगैरह शामिल होने चाहिए. कार के इंजन के चलने के दौरान स्पीडोमीटर पर वार्निंग लाइट्स को चेक करें. अगर कार वारंटी में नहीं है तो ऐसे रिपेयर का खर्च काफी ज्यादा हो सकता है.
5. लम्बी टेस्ट ड्राइव

आप जिस कार को खरीदने का मन बना रहे हैं उसे टेस्ट ड्राइव पर ले जाने से झिझकें नहीं. टेस्ट ड्राइव थोड़ा लम्बा होना चाहिए, हर तरह के ट्रैफिक और रोड हालत में लगभग 10-15 किलोमीटर काफी रहेगा. इस ड्राइव के दौरान गाड़ी के सस्पेंशन, स्टीयरिंग रिस्पांस, और कार का व्यवहार परखें. इस बात को सुनिश्चित करें की कार ज़रुरत से ज्यादा गर्म तो नहीं हो रही या एसी ट्रिप तो नहीं कर रहा. अगर गाड़ी बेचने वाला या कार एजेंट आपके साथ गाड़ी में है तो उनसे कम-से-कम बात कर कार पर ज्यादा ध्यान दें.
6. सही कीमत

मोलभाव छोड़ कर इस बात को सुनिश्चित करें की आप इस कार की सेकंड मार्केट हैण्ड कीमत से एक पैसा ज्यादा नहीं चुका रहे हैं. कार की सेकंड हैण्ड मार्केट कीमत पता लगाने के लिए आप इन्टनेट की मदद ले सकते हैं. इसके अलावे, आप एक कार बेचने वाला बनकर किसी एजेंट से भी कार की कीमत का पता लगा सकते हैं. ये बात जान लें की पहले तीन सालों में किसी भी कार की कीमत 40-50% तक गिरती है. हर साल एवं हर बार जो कार बेची जायेगी उसकी कीमत कम होगी. आफ्टरमार्केट मॉडिफिकेशन भी कार की कीमत पर असर डालते हैं.
इन सभी बातों को दिमाग में रखते हुए हमें भरोसा है की आप अपनी सेकंड हैण्ड कार को खरीदते वक़्त एक अच्छी डील पा सकेंगे.