ये कोई पुरानी बात नहीं है की कार के हेडलैंप बेहद सिंपल पार्ट्स हुआ करते थे जिसपर कस्टमर्स ज़्यादा सोचते नहीं थे. महंगे कार्स में भी सिंपल, रिफ्लेक्टर हेडलैंप हुआ करते थे जिसमें कोई आधुनिक या महंगी टेक्नोलॉजी नहीं इस्तेमाल की जाती थी. लेकिन अब कम से कम 4 तरह के हेडलैंप हैं जो मॉडर्न कार्स में मिला करते हैं. इस पोस्ट में हम इन्हीं 4 हेडलैम्प्स के बारे में बात करेंगे.
हैलोजेन रिफ्लेक्टर
Tata Tiago में हैलोजेन-रिफ्लेक्टर सेटअप होता है
रिफ्लेक्टर हेडलैम्प्स काफी स्टैण्डर्ड यूनिट हैं जो किसी भी आम कार में मिला करते हैं. मूलतः रिफ्लेक्टर हेडलैंप में स्टील के केस में एक बल्ब होता है. इसमें लगे मिरर रिफ्लेक्टर का काम करते हैं. आजकल अधिकांश हेडलैम्प्स में हैलोजेन बल्ब होते हैं. हैलोजेन बल्ब सस्ते होने के साथ 1000 घंटे की लाइफ वाले होते हैं और उनकी रौशनी टंगस्टन बल्ब से तेज़ होती है. हैलोजेन बल्ब आमतौर पर 55 वाट पॉवर का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, ये कुछ ख़ास निपुण नहीं होते. अधिकांश पॉवर लाइट के बजाय ताप में इस्तेमाल होता है. हैलोजेन लाइट के फायदों में ये चीज़ें शामिल हैं —
- वो महंगे नहीं होते. और इसी कारण से अधिकांश निर्माता इसका इस्तेमाल करते हैं.
- वो प्रोजेक्टर यूनिट्स से छोटे होते हैं और कम जगह लेते हैं.
- हैलोजेन बल्ब काफी रौशनी देते हैं. इसलिए अधिकांश हालत में ये कम कह्र्च पर सही रौशनी पाने का बेहतरीन तरीका होता है.
प्रोजेक्टर
Maruti Suzuki S-Cross में LED वाले प्रोजेक्टर हेडलैंप हैं!
इन हेडलैम्प्स को 1980 के दशक में लक्ज़री कार्स के साथ लॉन्च किया गया था और अब ये सस्ती कार्स में भी मिलने लगे हैं. कई मायनों में प्रोजेक्टर हेडलाइट्स रिफ्लेक्टर हेडलैम्प्स के जैसे ही होते हैं. इन हेडलैम्प्स में भी स्टील के केस में बल्ब लगा होता है और रिफ्लेक्टर का काम मिरर करते हैं. लेकिन, इसमें एक लेन्स भी होता है जो मैग्नीफाइंग ग्लास का काम करता है. ये हेडलाइट की रौशनी बढ़ाती है. इसमें एक कटऑफ शील्ड भी होता है जो इस बात को सुनिश्चित करता है की लाइट रोड की तरफ जाए. प्रोजेक्टर हेडलाइट्स के फायदों में यस बातें शामिल हैं –
- ये सामने से आ रहे ड्राइवर्स को चकाचौंध नहीं करते. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये रोड पर ज़्यादा फोकस करते हैं.
- ये हेडलाइट को और सही तरीके से फैलाती है.
- आप प्रोजेक्टर हेडलाइट्स में Xenon HID बल्ब्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.
Xenon
Maruti Suzuki Baleno में यही हेडलैंप हैं
Xenon हेडलैम्प्स आमतौर पर हैलोजेन्स से तीन गुना ज़्यादा तीव्र होते हैं. ये आमतौर पर हाई एंड कार में ऑफर किया जाते हैं. लेकिन ज़्यादा रौशनी करने के बावजूद, ये कम पॉवर का इस्तेमाल करते हैं. ये आमतौर पर 35 वाट पॉवर का इस्तेमाल करते हैं. इन हेडलाइट्स में Xenon गैस आमतौर पर High-Intensity Discharge (HID) लाइट्स से जानी जाती हैं और ये ऑन होने पर लाइट्स को टीम-टीमाने से रोकते हैं. ये गैस इस बात को भी सुनिश्चित करती है की अधिकतम रौशनी करने के पहले भी पर्याप्त रौशनी रहे. ये थोड़े से ब्लू टिंट के साथ सफ़ेद रौशनी देते हैं. इनके एडवांटेज हैं –
- ज्यादा रौशनी
- कम रौशनी की जगह पर अच्छी विसिबिलिटी
LED
नयी Maruti Suzuki Swift में ये हेडलैम्प्स मिलते हैं.
आखिर में Light Emitting Diodes (LEDs) कार के हेडलाइट्स तक पहुँच गए हैं. LEDs ना सिर्फ निपुण और असरदार होते हैं लेकिन इनके छोटे साइज़ के चलते कार डिज़ाइनर इन्हें बेहद पसंद करते हैं. इनके छोटे साइज़ के चलते डिज़ाइनर इन्हें पतले और अलग शेप दे सकते हैं. जहां LEDs Xenon HIDs जितनी रौशनी नहीं देते, वो अपने अधिकतम रौशनी तक बेहद जल्दी पहुँच जाते हैं. आमतौर पर इनकी लाइफ 15,000 घंटों की होती है. ये बेहद निपुण होते हैं क्योंकि ये अधिकांश पॉवर को रौशनी में बदल देते हैं. इसलिए ये ज़्यादा गर्म भी नहीं होते. LED आमतौर पर बेहद महंगे कार्स में पाए जाते हैं. लेकिन आने वाले समय में ये तकीनेक और सस्ते कार्स में भी मिलना शुरू हो जायेगी. LED हेडलाइट्स के एडवांटेज हैं –
- 15,000 घंटों की लम्बी लाइफ.
- बेहद एफ़ीशिएंट. जहां हैलोजेन बल्ब 80% एनर्जी बर्बाद करती है, LED लाइट्स के साथ ऐसा नहीं है.
- LEDs की रौशनी ज़्यादा तीव्र होती है.