कहते हैं सपनों को टूटते देर नहीं लगती, लेकिन कभी-कभी कुछ सपने बड़ी निर्ममता से टूटते हैं. आज हम ऐसे ही एक सपने की बात कर रहे हैं और वो है Tata Nano. Tata ने घोषणा की है कि वो अपने Nano का प्रोडक्शन बंद कर उसे मेड-टू-आर्डर श्रेणी में शामिल करेगी. और चूंकि जून में Tata ने Nano का बस एक ही यूनिट बनाया था, हम इसे मार्केट में Tata Nano की आखिरी सांस बुला सकते हैं. रतन टाटा का सपना था की वो इंडिया के लिए ऐसी कार बनाएं जिसे इंडिया का आम नागरिक तक खरीद सके. लेकिन, शायद रतन टाटा भूल गए थे की इंडिया में लोग कार को ज़रुरत के तौर पर नहीं बल्कि हैसियत के तौर पर देखा करते हैं.
Nano ने अपने छोटी ज़िन्दगी में कई चुनौतियों का सामना किया. और हर एक चुनौती उसके ताबूत में एक कील के समान साबित हुई. चाहे वो मार्केट में लॉन्च में विलम्ब हो या फिर मॉडल्स में आग लगने की शिकायत, Nano एक दिक्कतों से भरी कार थी. सबसे पहली दिक्कत थी इसकी कीमत, जहां Nano को ‘लखटकिया कार’ के रूप में पेश की जा रही थी, ये कभी भी 1 लाख रूपए की नहीं बिकी. कभी इसे किफायती इंजीनियरिंग का नमूना भी कहा जाता था, लेकिन इसके कीमत को कम रखने के लिए इसमें इतने समझौते किये गए की शायद अंत में ये एक वैल्यू फॉर मनी कार के बजाय लोगों को एक समझौता ही लगने लगी थी. और आप 2.36 लाख रूपए खर्च कर अपनी जिंदगी की पहली 4 व्हीलर पर समझौता करना पसंद तो बिल्कुल ही नहीं करेंगे. यहाँ इस बात को भी ध्यान में रखना होगा की जब Nano लॉन्च हुई थी तब Tata मुख्यतः अपने Indica aur Indigo के साथ बिल्ड क्वालिटी में कोई झंडे नहीं गाड़ रही थी. फिर उसके ऊपर से इतनी सस्ती कार पर शायद लोग भरोसा नहीं कर पाए.
अंत में लोग Tata Nano को एक ऐसे ही सपने के तौर पर याद करेंगे जो सही तरीके से पूरा नहीं हो पाया. इंडिया की सबसे सस्ती कार होने और बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार लाने के अलावे शायद Nano ने अपने ज़िन्दगी में कोई कीर्तिमान स्थापित नहीं किये, पर इतना ज़रूर कहा जा सकता है की बिना ज़्यादा यूनिट्स बेचे हुए अगर कोई कार इतनी सफल हो पायी है तो वो Tata Nano ही है. उम्मीद है Tata इस कार से सबक लेकर आगे मार्केट में और अच्छी कार्स लाएगी, और कंपनी के हाल के प्रोडक्ट्स को देखकर लगता है उसने अपना सबक सीख लिया है.