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4 व्हील ड्राइव गाड़ियों के बारे में 10 बातें जो आपको बिल्कुल नहीं पता होंगी!

जहां हमारे कार मार्केट में SUV सेगमेंट तेज़ गति से बढ़ रहा है, अधिकांश इंडियन SUV कस्टमर्स 4×4 वैरिएंट नहीं चुनते. ऐसा इसलिए है की इंडिया में अधिकांश कस्टमर्स के लिए 4WD SUVs का इस्तेमाल बेहद सीमित होता है. लेकिन, ऐसी कई चीज़ें हैं जो एक 4-व्हील ड्राइव SUV कर सकती है. पेश हैं 4 व्हील ड्राइव SUVs के बारे में कुछ आम चीज़ें जो आपको जाननी चाहिए.

4-व्हील ड्राइव लो रेश्यो रोड के लिए नहीं है

4 व्हील ड्राइव गाड़ियों के बारे में 10 बातें जो आपको बिल्कुल नहीं पता होंगी!

बहुत सारी 4X4 गाड़ियाँ में लो-रेश्यो ट्रान्सफर केस लगा होता है जो तेज़ ढलान या फिसलन वाली सतह पर गाड़ी की मदद करती हैं. 4-व्हील ड्राइव लो रेश्यो को कभी भी बराबर सतह या पक्का रोड पर नहीं इस्तेमाल करना चाहिए.

आम सतह पर इस मोड का इस्तेमाल छोटी डैमेज को बढाता है और गियरबॉक्स को भी डैमेज कर सकता है. आम हालात में जब तक 4-व्हील हाई ड्राइव मोड की ज़रुरत न आ पड़े गाड़ी को तब तक 2-व्हील ड्राइव मोड में ही रखना चाहिए. वहीँ 4 लो मोड को विषम हालात में ही इस्तेमाल करना चाहिए.

तेज़ रफ़्तार पर डीफ्फ-लॉक गाड़ी को नुक्सान पहुंचा सकते हैं

डिफरेंशियल लॉक दोनों चक्कों को एक ही स्पीड पर घुमाता है. जब कार फिसलन भरी सतह जैसे कीचड़ या बर्फ पर हो तो ये फीचर बहुत काम आता है. जब डिफरेंशियल लॉक लगा हो तब गाड़ी को मोड़ने से काफी ज्यादा अंडरस्टीयर होता है, और तेज़ रफ़्तार पर गाड़ी आपके काबू के बाहर जा सकती है. मोड़ लेते वक़्त बाहर के चक्के को अन्दर के चक्के से ज्यादा घूमना चाहिए क्यूंकि उसे ज्यादा दूरी तय करनी होती है. अगर दोनों चक्कों को एक ही आरपीएम पर घूमने के लिए लॉक किया गया है, तो टर्निंग रेडियस बढ़ जाएगा और अक्सर गाड़ी काबू के बाहर हो जाती है.

ऑल-व्हील ड्राइव और 4X4 एक नहीं होते

4 व्हील ड्राइव गाड़ियों के बारे में 10 बातें जो आपको बिल्कुल नहीं पता होंगी!

बहुत साड़ी गाड़ियों में ऑल-व्हील ड्राइव सिस्टम लगा होता है जो पॉवर को गाड़ी के चारों चक्कों तक भेजता है लेकिन इन्हें 4X4 से कंफ्यूज नहीं करना चाहिए. एक 4X4 गाड़ी में लो-रेश्यो गियरबॉक्स, और दूसरे ऑफ-रोड फ्रेंडली फ़ीचर्स जैसे डिफरेंशियल लॉक भी होते हैं.

Renault Duster, Mahindra XUV 500, Audi Q3 ऑल-व्हील ड्राइव गाड़ियां हैं लेकिन उनमें लो-रेश्यो गियरबॉक्स नहीं है. Thar, Scorpio, Safari, Range Rover जैसी गाड़ियों में लो-रेश्यो गियरबॉक्स होता है जो उन्हें काफी ज्यादा सक्षम बनाती हैं.

लेकिन वो हर जगह जाने के लिए नहीं बनी होतीं

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4X4 वाली गाड़ियां जिनमे लो-रेश्यो गियरबॉक्स और दूसरे इक्विपमेंट होते हैं ज़रूर आपको दुर्गम जगहों तक लेकर जा सकती हैं लेकिन उनकी भी अपनी सीमाएं होती हैं. कुछ फ़ीचर्स जैसे टायर टाइप, एप्रोच और डिपार्चर एंगल, डिफरेंशियल लॉक, सस्पेंशन ट्रेवल आदि गाड़ी की काबिलियत तय करते हैं.

फंसने से पहले 4X4 का इस्तेमाल कीजिये

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ये समझना ज़रूरी है की 4X4 सिस्टम को कब इस्तेमाल किया जाए. ऑल-व्हील ड्राइव सिस्टम होने का मतलब ये नहीं की वो हमेशा 4X4 मोड में है. हमेशा आगे को रास्ते को भांप लें और फिर 4X4 का इस्तेमाल करें. बहुत साडी कार्स फुल-टाइम 4X4 सिस्टम के साथ आती हैं लेकिन उनमें बस आंशिक 4X4 सिस्टम होता है जिसे एक्टिवेट करने की ज़रुरत होती है.

ज्यादा फ्यूल इस्तेमाल पर काबू पाने के लिए कई निर्माता इस आंशिक 4-व्हील ड्राइव सिस्टम को इस्तेमाल करते हैं ताकि ये तभी चालू हो जब गाड़ी को इसकी ज़रुरत हो. या फॉर कुछ ऐसी गाड़ियाँ होती हैं जिनमें आपको 4-व्हील ड्राइव मोड को मैन्युअली एक्टिवेट करना होता है. कई सारे यूजर जो ऑफ-रोड नहीं जाते हैं अपनी गाड़ी को इस मोड में डालना भूल जाते हैं और उन्हें इसका अहसास तभी होता है जब उनकी गाड़ी फँस जाती है.

माइलेज और ऑफ-रोडिंग एक दूसरे के दोस्त नहीं

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ऑफ-रोडिंग में काफी ज्यादा संसाधन की ज़रुरत होती है जो खराब रास्तों पर कार के आखिरी बूँद तक उसका पॉवर निचोड़ लेता है. लगातार रेव्विंग और धीमी रफ़्तार के चलते ऑफ-रोडिंग कार के इंजन और गियरबॉक्स पर भारी पड़ सकता है. 4X4 का इस्तेमाल और मुश्किल रास्ता गाड़ी के माइलेज पर बहुत प्रभाव डालते हैं. अगर आप ऑफ-रोड जाने का प्लान कर रहे हैं तो ये बात सुनिश्चित कर लीजिये की आपके पास पर्याप्त फ्यूल है और फ्यूल मीटर पर नज़र बनाये रहिये.

लो-रेश्यो में एसयूवी काफी ज्यादा टॉर्क उत्पन्न करती है

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जब लो-रेश्यो मोड में लो-रेश्यो ट्रान्सफर केस इस्तेमाल किया जाता है तो गाड़ी के अनुसार टॉर्क आउटपुट लगभग दोगुना नाद जाता है. ये बाधा हुआ टॉर्क गाड़ी को मुश्किल जगहों से निकलने में मदद करता है और ये हमेशा तभी इस्तेमाल किया जाना चाहिए जब इसकी ज़रुरत हो. रेगुलर मोड में Mahindra Thar का टॉर्क आउटपुट 247 एनएम होता है लेकिन जब लो-रेश्यो गियर इस्तेमाल किया जाता है तो इसका टॉर्क आउटपुट बढ़ कर 600 एनएम हो जाता है.

रियर-व्हील ड्राइव के मुकाबले 4X4 गाड़ी काफी महंगी होती है

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केवल दो चक्कों को पॉवर देने में काफी कम काम की ज़रुरत होती है और इसका लेआउट भी सिंपल होता है. 4X4 मॉडल ज्यादा जटिल होते हैं और इसीलिए ज्यादा महंगे भी. दोनों एक्सल तक पॉवर भेजना और ऐसा करते वक़्त आउटपुट बैलेंस करने में ज्यादा इक्विपमेंट और इंजीनियरिंग की ज़रुरत होती है. मसलन Fortuner डीजल के 2-व्हील ड्राइव मॉडल की कीमत 27.2 लाख रूपए है और 4-व्हील ड्राइव बेस मॉडल की कीमत 29.71 लाख रूपए है, लगभग 2.5 लाख रूपए का अंतर.

महंगी मेंटेनेंस

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4X4 का मतलब ज्यादा मूविंग पार्ट, ज्यादा गियर, जो अपने आप ही मेंटेनेंस को बढ़ा देते हैं. ऐसे लोग जो 4X4 खरीदते हैं वो रोड पर ज्यादा समय नहीं बिताते और अक्सर ऑफ-रोडिंग जाते हैं. ज्यादा तोड़-मरोड़ के चलते भी मेंटेनेंस का खर्चा बढ़ जाता है.

पेट्रोल और डीजल इंजन के साथ उपलब्ध

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नहीं, सारे 4X4 डीजल इंजन वाले ही नहीं होते हैं. कई विकल्प हैं जिसमें आपको पेट्रोल इंजन का रिफाइनमेंट और 4X4 की काबिलियत एक साथ मिल सकती है. डीजल एसयूवी अपने माइलेज और टॉर्क आउटपुट के चलते प्रसिद्ध हैं लेकिन Maruti Gypsy और Honda CR-V जैसे विकल्प भी बाज़ार में उपलब्ध हैं. हाँ, वो कम दिखते हैं और हाई-एंड एसयूवी हैं लेकिन बाज़ार में आप्शन है.

फोटो — 8,9,10